जब पोथे खाली होते है, जब हर्फ़ सवाली होते है
जब गज़ले रास नही आती अफ़साने गाली होते है
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है
जब सूरज का लश्कर छत से गलियो मे देर से जाता है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मन करने पर भी पारो पढने आ जाती है
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है
तब एक पगली लडकी के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लडकी के बिन मरना भी भारी लगता है!
जब गज़ले रास नही आती अफ़साने गाली होते है
जब बासी फीकी धूप समेटे दिन जल्दी ढल जता है
जब सूरज का लश्कर छत से गलियो मे देर से जाता है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है
जब कालेज से घर लाने वाली पहली बस छुट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मन करने पर भी पारो पढने आ जाती है
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है
तब एक पगली लडकी के बिन जीना गद्दारी लगता है
और उस पगली लडकी के बिन मरना भी भारी लगता है!